मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के पतन के बाद से ही बिना संपूर्ण मंत्रिपरिषद के शिवराज सिंह चौहान सरकार चला रहे थें. सरकार बनने के 100 दिन बाद भी मंत्रिपरिषद का गठन नहीं होने से मध्य प्रदेश की जनता का गुस्सा और तकलीफें दोनों बढ़ती ही जा रही थी.
एक तरह भाजपा के पुराने विधायकों का दबाव और उधर सिंधिया खेमे को संतुष्ट करने की जद्दोजहद में फंसे सीएम शिवराज सिंह चौहान ने किसी तरह से मंत्रिमंडल का विस्तार तो कर दिया लेकिन ऐसा लगता है कि उनके लिए सिर मुंडाते ही ओले पड़ने वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही है.
कांग्रेस से आए दलबदलुओं को संतुष्ट करने और भाजपा के पुराने विधायकों के बीच तालमेल बैठाने के चक्कर में मध्य प्रदेश भाजपा का सामाजिक और भौगोलिक समीकरण पूरी तरह से बिगड़ चुका है. यही वजह है कि मंत्रिमंडल विस्तार कांग्रेस सरकार का हुआ है और खुशी की लहर कांग्रेस में दौड़ पड़ी है.
कांटों का ताज
दरअसल वर्तमान परिस्थितियों में शिवराज सिंह चौहान जिस कुर्सी पर बैठे हैं, वो कांटों भरे ताज से कम नहीं होगा. भाजपा में अंदर ही अंदर आग लगी हुई है. जिस तरह से भाजपा के तपे तपाए कार्यकर्ताओं की अनदेखी हो रही है, निश्चित तौर पर उसका खामियाजा 24 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में भाजपा को भुगतना पड़ेगा.
चंबल और ग्वालियर का पलड़ा भारी
जिस प्रकार से विधानसभा की 24 सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव को देखते हुए चंबल और ग्वालियर का पलड़ा इस मंत्रिपरिषद विस्तार में भारी पड़ा है, तो वहीं महाकौशल और विंध्य इलाके से प्रतिनिधित्व लगभग खत्म हो चुका है जबकि 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस लहर के बावजूद भाजपा को 30 में से 24 सीटों पर जीत मिली थी.
इस इलाके से मात्र 2 मंत्री बनाए गए हैं. जबलपुर से किसी को मंत्री नहीं बनाया गया है. रीवा और शहडोल संभाग से सिर्फ एक एक विधायक को मंत्रिमंडल में जगह मिली है.
जातीय समीकरणों में भी फेल हुए शिवराज
शिवराज सिंह चौहान की मुसीबतें आगामी चुनाव में इसलिए भी बढ़ सकती है कि जहां राजपूत बिरादरी से दर्जन भर मंत्री बन चुके हैं तो ब्राह्मण समाज से महज 02 मंत्री बनाए गए हैं. वैश्य, सिंधी, लोधी, जाटव, पंवार बिरादरी से किसी को भी मंत्री नहीं बनाया गया है. विंध्य के क्षेत्र में भाजपा को एकतरफा जीत दिलाने वाले भाजपा विधायक बुरी तरह नाराज दिखाई दे रहे हैं. कांग्रेस खेमे में इसे लेकर बेहद हर्ष का माहौल दिखाई दे रहा है.
ऐसे में अगर 24 सीटों की बजाय 30 से 40 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की नौबत आ जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि कई भाजपा विधायक भी मंत्रिमंडल विस्तार से नाराज होकर इस्तीफा देने का मन बना रहे हैं.