बिहार इन दिनों डबल त्रासदी झेल रहा है. एक तरह जहां कोरोना की वैश्विक महामारी है तो वहीं राज्य की बड़ी आबादी बाढ़ के संकट से जूझ रही है. कोरोना की वजह से लॉकडाउन लगा तो बड़ी संख्या में बिहार के लोग जो देश के दूसरे हिस्से में नौकरी या मजदूरी करते थें, वो घर लौट आएं हैं. इध बिहार में विधानसभा का कार्यकाल भी समाप्त होने के कगार पर है. ऐसी स्थिति में बिहार की राजनीति भी दो धड़ों में बंट चुकी है.
एक तरफ तो नीतीश कुमार और भाजपा है, जो हर हाल में समय पर चुनाव कराना चाहती है तो दूसरी ओर विपक्षी राजद और कांग्रेस हैं, जो अभी चुनाव के लिए समय को सही नहीं बता रहे हैं. विपक्ष तो विपक्ष नीतीश कुमार की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान भी फिलहाल चुनाव के मूड में नहीं हैं. सच पूछें तो वाकई अभी बिहार में चुनाव जैसी परिस्थिति नहीं है लेकिन क्यों नीतीश कुमार आनन फानन में चुनाव कराने को बेताब हैं, इसकी पड़ताल कर रहे हैं हम.
बेरोजगारों के लिए कोई काम नहीं
लॉकडाउन की वजह से प्रवासी मजदूर बिहार तो आ गए लेकिन सच्चाई यही है कि उनके पास कोई काम नहीं है. वो यहां भी आकर दाने दाने को तरस रहे हैं. अब सवाल तो नीतीश कुमार की कार्यशैली पर उठना लाजिमी है कि जब उनके पास पिछले 15 साल से बिहार की बागडोर है तो आखिर वो रोजगार उपलब्ध कराने में पूरी तरह से असफल साबित क्यों हो रहे हैं ! बिहार में पिछले 15 सालों में औद्योगिकरण शून्य रहा है. अब जैसे जैसे दिन गुजरते जाएंगे और मजदूरों के पास काम नहीं होगा तो एक बड़ी आबादी सरकार से गुस्सा होकर विपक्ष को वोट कर सकती है. नीतीश कुमार के लिए ये एक बड़ी चिंता है.
स्वास्थ्य व्यवस्था की खुली पोल
नीतीश कुमार ने हमेशा विकास को अपना यूएसपी बनाया लेकिन कोरोना की महामारी में बिहार के विकास का ढोल फट गया. हर तरह कुव्यवस्था, सरकारी मशीनरी की विफलता और प्रशासनिक लाचारी का माहौल देखने को मिला. राज्य भर में इसे लेकर सरकार की बदनामी हुई. ऐसे में लगता है कि जैसे जैसे वक्त बीतता जाएगा, सरकार की बदनामी बढ़ती जाएगी और सरकार के खिलाफ आक्रोश विपक्ष के वोट बैंक में बदल जाएगा.
तेजस्वी यादव की सक्रियता
पूर्व उपमुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने जिस प्रकार से सरकार के खिलाफ आक्रोश का सफल नेतृत्व किया है, उससे भी नीतीश कुमार के होश उड़े हुए हैं. तेजस्वी बेहद आक्रामकता के साथ सरकार की कमियों को उजागर कर रहे हैं और निरंतर धज्ज्यिं उड़ा रहे हैं. बढ़ते समय के साथ साथ तेजस्वी की धार और तीखी होती जा रही है. विपक्ष के तीखे तेवरों से हर सरकार डरती है और यही हाल बिहार में नीतीश कुमार का है. यही वजह है कि वो जल्द से जल्द चुनाव चाहते हैं.